भगवद गीता के अध्याय 6 को ध्यान योग के नाम से जाना जाता है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ध्यान की महिमा और जीवन में योग के महत्व के बारे में बताया। यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि मन को वश में करके ध्यान के माध्यम से कैसे आत्म-साक्षात्कार किया जा सकता है। इस ब्लॉग में हम गीता के अध्याय 6 के सर्वोत्तम श्लोक प्रस्तुत कर रहे हैं। हर श्लोक का संस्कृत पाठ , उसका हिंदी अनुवाद , और जीवन में उसका महत्व विस्तार से समझाया गया है। अधिक जानकारी के लिए आप mavall.in पर भी जा सकते हैं। भगवद गीता अध्याय 6 का परिचय ध्यान योग का मुख्य उद्देश्य मन को नियंत्रित करना और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करना है। भगवान श्रीकृष्ण ने इस अध्याय में बताया कि जो व्यक्ति ध्यान में स्थिर हो जाता है, वह आत्म-साक्षात्कार के साथ परम आनंद को प्राप्त करता है। यह अध्याय विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो ध्यान साधना करना चाहते हैं और आत्म-अनुशासन के मार्ग पर चलना चाहते हैं। 1. श्लोक 6.5 श्लोक: उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।। हिंदी अनुवाद: मनु...