भगवद गीता के अध्याय 9 को "राजविद्या और राजगुह्य योग" के नाम से जाना जाता है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को परम रहस्य, भक्ति और ईश्वर के अविनाशी रूप के बारे में समझाया है। इस ब्लॉग में, हम भगवद गीता के इस अध्याय के सर्वश्रेष्ठ श्लोकों का संस्कृत में पाठ और हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करेंगे, ताकि भारतीय पाठकों को इन श्लोकों के गहरे अर्थ और अद्वितीय संदेशों को समझने में मदद मिल सके। अधिक जानकारी और गीता के अन्य अध्यायों के बारे में विस्तृत अध्ययन के लिए आप mavall.in पर जा सकते हैं।
भूमिका
भगवद गीता का अध्याय 9 एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्याय है, क्योंकि इसमें भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को राजविद्या (राज्य का सर्वोत्तम ज्ञान) और राजगुह्य (राज्य का सर्वोत्तम रहस्य) के बारे में बताया। यह अध्याय भक्तों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें भक्ति के माध्यम से परमात्मा की प्राप्ति और उनकी दिव्य महिमा का वर्णन किया गया है।
इस ब्लॉग में हम गीता के अध्याय 9 के सर्वश्रेष्ठ श्लोकों को संस्कृत में और उनके हिंदी अनुवाद के साथ समझेंगे। यदि आप भगवद गीता के अन्य अध्यायों और श्लोकों को समझना चाहते हैं, तो mavall.in पर जाएं, जहां आपको गीता के हर पहलू पर गहरी जानकारी मिलेगी।
भगवद गीता अध्याय 9: सर्वश्रेष्ठ श्लोक संस्कृत में और हिंदी अनुवाद के साथ
1. श्लोक 9.1
संस्कृत श्लोक:
इति श्रीभगवानुवाच | राजविद्या राजगुह्यं पवित्रं परमं पदम्।
विद्यां तद्वयपाशं च प्रतिग्राह्यं मयां मतम्।।
हिंदी अनुवाद:
"भगवान श्री कृष्ण ने कहा, 'हे अर्जुन! मैं तुम्हें राजविद्या और राजगुह्य, जो सबसे पवित्र और सर्वोच्च है, उस ज्ञान को बताता हूँ। यह वह ज्ञान है, जो मुझे अत्यंत प्रिय है और जिसको प्राप्त करने से आत्मा को शांति मिलती है।'"
व्याख्या:
यह श्लोक भगवान श्री कृष्ण के सर्वोच्च ज्ञान की ओर इशारा करता है, जो केवल भक्तों के लिए है। यह ज्ञान परम शांति की ओर मार्गदर्शन करता है।
2. श्लोक 9.7
संस्कृत श्लोक:
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वाम्सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।
हिंदी अनुवाद:
"हे अर्जुन! तुम सभी धर्मों का त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम चिंता मत करो।"
व्याख्या:
यह श्लोक भगवान श्री कृष्ण के उस सर्वव्यापी प्रेम और उनकी कृपा को दर्शाता है, जो भक्तों को उनके पापों से मुक्त करने में सक्षम है।
3. श्लोक 9.11
संस्कृत श्लोक:
अवजानन्ति मामूद्धा मानुषीं तनुमाश्रितम्।
परम्प्राम्ह परमेश्वर माया जगत्प्रकाशक।।
हिंदी अनुवाद:
"जो लोग मुझे मनुष्य रूप में देखते हैं, वे मुझे अवज्ञा करते हैं, क्योंकि वे मेरी परम शक्ति और दिव्य रूप को समझ नहीं पाते।"
व्याख्या:
यह श्लोक हमें बताता है कि भगवान श्री कृष्ण के रूप को समझने में नासमझ लोग उनका अपमान करते हैं, क्योंकि वे उनके दिव्य स्वरूप से अपरिचित होते हैं।
4. श्लोक 9.13
संस्कृत श्लोक:
महाराजयग्यशर्चिता सर्वे भूतपूजिनम्।
वह स्वधर्ममेकांतन्यं त्वं कर्मकेंद्रवशं।।
हिंदी अनुवाद:
"सभी प्राणियों को पूजने वाले, जो दिव्य रूप में हैं, उन्हें मैं अनंत शक्तियों से पूजित करता हूँ।"
व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि भगवान श्री कृष्ण ने सभी जीवों में अपनी दिव्य उपस्थिति को स्थापित किया है, और वे सबकी पूजा करने योग्य हैं।
5. श्लोक 9.22
संस्कृत श्लोक:
अनन्याश्च यन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।
हिंदी अनुवाद:
"जो लोग मेरे परम रूप का निरंतर ध्यान करते हैं और मुझसे अनन्य रहते हैं, उनके लिए मैं हमेशा योग और भोग की व्यवस्था करता हूँ।"
व्याख्या:
यह श्लोक उन भक्तों के लिए है, जो भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण में रहते हैं। भगवान उनकी हर आवश्यकता की पूर्ति करते हैं।
6. श्लोक 9.26
संस्कृत श्लोक:
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहम्भक्ति-युक्तस्य स्वीकारं हरि स्मयाः।।
हिंदी अनुवाद:
"जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक मुझसे पत्र, पुष्प, फल या जल अर्पित करता है, मैं उसकी भक्ति को स्वीकार करता हूँ।"
व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि भगवान श्री कृष्ण सच्ची भक्ति से अर्पित छोटी सी वस्तु भी स्वीकार करते हैं।
7. श्लोक 9.32
संस्कृत श्लोक:
मया हि कर्मफलयोगं नित्यं प्राप्तं महीतले।
धर्मज्योतिवर्मेधां प्रपद्यं सन्मुखं मया।।
हिंदी अनुवाद:
"मेरे द्वारा किए गए प्रत्येक कार्य का फल हमेशा मेरे दृष्टिकोण से प्राप्त होता है, और मैं हर प्राणी को अपनी कृपा से महिमान्वित करता हूँ।"
व्याख्या:
भगवान श्री कृष्ण ने बताया कि उनके द्वारा किए गए सभी कार्यों में सत्य, धर्म और भक्ति की महिमा होती है।
8. श्लोक 9.34
संस्कृत श्लोक:
मन्मनाभवमद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कारम्।
मामेवैष्यसि युक्त्वा ब्रह्मध्यानं तथाऽद्भवम्।।
हिंदी अनुवाद:
"जो व्यक्ति मेरे साथ सच्ची भक्ति से जुड़ा है और मेरी पूजा करता है, वह हमेशा मेरी शरण में आता है।"
व्याख्या:
यह श्लोक यह बताता है कि भगवान की सच्ची भक्ति और ध्यान से व्यक्ति परम धाम को प्राप्त करता है।
निष्कर्ष:
भगवद गीता का अध्याय 9, जिसे "राजविद्या और राजगुह्य योग" कहा जाता है, जीवन के सबसे गहरे रहस्यों को उजागर करता है। इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को भक्ति, आत्मा और परमात्मा के रहस्यों के बारे में विस्तार से बताया।
यह श्लोक हमें सिखाते हैं कि भगवान की सच्ची भक्ति से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और एक भक्त को परम धाम की प्राप्ति होती है।
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