भगवद गीता का पाँचवाँ अध्याय “कर्म संन्यास योग” के नाम से जाना जाता है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म संन्यास (त्याग) और कर्म योग (कार्य) का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। उन्होंने बताया कि दोनों ही मार्ग श्रेष्ठ हैं, लेकिन कर्म योग का पालन करना अधिक उपयुक्त है क्योंकि यह साधक को जीवन के साथ जोड़ते हुए आध्यात्मिक उन्नति का अवसर प्रदान करता है।
इस ब्लॉग में हम भगवद गीता के अध्याय 5 के सर्वोत्तम श्लोकों का अध्ययन करेंगे। यहाँ संस्कृत श्लोकों के साथ उनका हिंदी अनुवाद और व्याख्या दी जाएगी ताकि आप इन श्लोकों को अपने जीवन में अपना सकें। अधिक जानकारी के लिए mavall.in पर जाएं।
भगवद गीता अध्याय 5 का परिचय
कर्म संन्यास और कर्म योग दोनों ही मार्गों का लक्ष्य मोक्ष है। श्रीकृष्ण ने स्पष्ट किया कि केवल कर्म का त्याग नहीं, बल्कि कर्म करते हुए समर्पण भाव से जीना श्रेष्ठ है। जो व्यक्ति ईश्वर के प्रति समर्पित होकर कर्म करता है, वह जीवन में सुख और शांति प्राप्त करता है।
यह अध्याय साधक को बताता है कि किस प्रकार कर्म करते हुए भी मन को शांत रखा जा सकता है।
1. श्लोक 5.2
श्लोक:
संन्यासः कर्मयोगश्च नि:श्रेयसकरावुभौ।
तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते।।
हिंदी अनुवाद:
संन्यास और कर्म योग दोनों ही मोक्ष प्रदान करने वाले हैं। परन्तु कर्म संन्यास की तुलना में कर्म योग श्रेष्ठ है।
महत्व:
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि त्याग (संन्यास) और कर्म योग दोनों ही मार्ग सही हैं, लेकिन कर्म योग अधिक व्यावहारिक और श्रेष्ठ है। इस श्लोक से यह प्रेरणा मिलती है कि अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए जीवन जीना ही सही तरीका है।
2. श्लोक 5.5
श्लोक:
यत्सांख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते।
एकं सांख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति।।
हिंदी अनुवाद:
जो स्थान ज्ञान (सांख्य योग) से प्राप्त होता है, वही स्थान कर्म योग से भी प्राप्त होता है। जो इन दोनों को एक मानता है, वही सही समझ रखता है।
महत्व:
भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में बताते हैं कि चाहे ज्ञान का मार्ग हो या कर्म का मार्ग, दोनों का अंतिम लक्ष्य एक ही है - आत्मज्ञान और मोक्ष। हमें किसी भी मार्ग का चयन करना चाहिए, लेकिन अंत में समर्पण और निष्ठा आवश्यक है।
3. श्लोक 5.6
श्लोक:
संन्यासस्तु महाबाहो दु:खमाप्तुमयोगतः।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म न चिरेणाधिगच्छति।।
हिंदी अनुवाद:
हे महाबाहु (अर्जुन), बिना योग (कर्म) के संन्यास कठिन है। लेकिन जो व्यक्ति कर्म योग में स्थित है, वह शीघ्र ही ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है।
महत्व:
यह श्लोक बताता है कि केवल कर्मों का त्याग करना पर्याप्त नहीं है। बल्कि समर्पित भाव से कर्म करना और उसमें निपुण होना हमें ईश्वर के करीब ले जाता है।
4. श्लोक 5.10
श्लोक:
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा।।
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति अपने कर्मों को भगवान को समर्पित कर देता है और आसक्ति त्याग कर कार्य करता है, वह पाप से मुक्त रहता है। जैसे कमल का पत्ता पानी में रहते हुए भी जल से नहीं भीगता।
महत्व:
भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि यदि हम अपने कर्मों को भगवान के प्रति समर्पित कर दें और किसी भी फल की आसक्ति न रखें, तो हमारे कर्म हमें बांधते नहीं हैं।
5. श्लोक 5.12
श्लोक:
युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम्।
अयुक्त: कामकारेण फले सक्तो निबध्यते।।
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति कर्म के फल को त्यागकर कार्य करता है, वह शांति प्राप्त करता है। लेकिन जो व्यक्ति फल की कामना करता है, वह कर्म के बंधन में बंध जाता है।
महत्व:
यह श्लोक निष्काम कर्म योग की महिमा को दर्शाता है। श्रीकृष्ण ने बताया कि कर्म करते समय फल की चिंता त्याग देना ही वास्तविक शांति का मार्ग है।
6. श्लोक 5.18
श्लोक:
विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।
हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति ज्ञान और विनम्रता से सम्पन्न है, वह ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ते और चांडाल में समानता देखता है।
महत्व:
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण समदर्शिता की बात करते हैं। ज्ञानी व्यक्ति सभी जीवों में समानता देखता है और भेदभाव नहीं करता।
7. श्लोक 5.22
श्लोक:
ये हि संस्पर्शजा भोगा दु:खयोनय एव ते।
आद्यन्तवन्त: कौन्तेय न तेषु रमते बुध:।।
हिंदी अनुवाद:
हे अर्जुन! इंद्रियों के सुख-दुःख क्षणिक हैं और दुःख का कारण बनते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति उनमें आसक्त नहीं होता।
महत्व:
यह श्लोक हमें बताता है कि इंद्रियों के भोग क्षणिक होते हैं और अंततः दुःख का कारण बनते हैं। इसलिए, हमें इनसे दूर रहकर आत्मज्ञान की ओर बढ़ना चाहिए।
Conclusion
भगवद गीता के अध्याय 5 में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म संन्यास और कर्म योग के बीच संतुलन स्थापित किया। यह अध्याय हमें सिखाता है कि बिना फल की आसक्ति के कर्म करना और भगवान को समर्पित रहना ही सबसे श्रेष्ठ मार्ग है।
इन श्लोकों के माध्यम से हमें आत्मज्ञान, शांति, और मोक्ष का मार्ग प्राप्त होता है। अगर आप भगवद गीता के अन्य अध्यायों का भी अध्ययन करना चाहते हैं, तो mavall.in पर जाएं।
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