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भगवद गीता अध्याय 15: सर्वश्रेष्ठ श्लोक संस्कृत में और हिंदी अनुवाद के साथ | परमात्मा और ब्रह्म का ज्ञान |

 भगवद गीता भारतीय धर्म और दर्शन का एक अद्भुत ग्रंथ है। इसके प्रत्येक अध्याय में जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहन चर्चा की गई है। अध्याय 15 - पुरुषोत्तम योग विशेष रूप से परमात्मा, ब्रह्म और आत्मा के रहस्यों पर प्रकाश डालता है। इस अध्याय के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन के सर्वोत्तम ज्ञान से परिचित कराया है।

इस ब्लॉग में हम भगवद गीता अध्याय 15 के सर्वश्रेष्ठ श्लोक, उनके संस्कृत पाठ और हिंदी अनुवाद के साथ चर्चा करेंगे। साथ ही हम जानेंगे कि इस ज्ञान को अपने जीवन में किस प्रकार अपनाया जा सकता है। अधिक जानकारी और गीता से जुड़ी सामग्री के लिए देखें: https://mavall.in/


अध्याय 15 का परिचय

अध्याय 15 को "पुरुषोत्तम योग" कहा गया है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा, परमात्मा और ब्रह्म के अंतर को समझाया है। यह अध्याय हमें यह बताता है कि ब्रह्म (परमात्मा) सर्वव्यापी है और आत्मा उसी का एक अंश है। यह अध्याय हमें योग, भक्ति और आत्म-ज्ञान के सर्वोत्तम मार्ग से जोड़ता है।

मुख्य विषय:

  1. परमात्मा और ब्रह्म का परिचय।
  2. आत्मा का शाश्वत स्वरूप।
  3. आत्म-ज्ञान के मार्ग और उनका महत्व।
  4. जीवन का उच्चतम उद्देश्य।

भगवान श्रीकृष्ण के इस दिव्य ज्ञान को समझना हमारे जीवन को सार्थक और अर्थपूर्ण बना सकता है।


अध्याय 15 के सर्वश्रेष्ठ श्लोक संस्कृत और हिंदी अनुवाद के साथ

1. श्लोक 15.1

संस्कृत:
ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।

हिंदी अनुवाद:
ऊर्ध्वमूल (आधार) और नीचे शाखाओं वाला अश्वत्थ वृक्ष अडिग और अविनाशी है, इसके पत्ते वेद के छंदों के समान हैं। जो इस वृक्ष को जानता है, वह वेद का ज्ञानी होता है।

महत्व:
यह श्लोक ब्रह्मा के सर्वोत्तम रूप को दर्शाता है, जो स्थिर, अविनाशी और असीमित है। यह हमें बताता है कि परमात्मा से जुड़ा ज्ञान ही सच्चा वेदज्ञान है।


2. श्लोक 15.7

संस्कृत:
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।
मन:षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति।।

हिंदी अनुवाद:
हे अर्जुन! मुझसे ही इस संसार में जीवात्मा का अंश है, जो शाश्वत है। यह जीवात्मा अपनी इन्द्रियों और मन से प्रकृति के तत्वों से आकर्षित होकर कर्म करता है।

महत्व:
यह श्लोक आत्मा के शाश्वत और अविनाशी रूप को दर्शाता है। आत्मा परमात्मा का अंश है और उसके साथ जुड़ने के लिए हमें सही कर्म और सोच की आवश्यकता होती है।


3. श्लोक 15.13

संस्कृत:
दीपो यथा तनुं यत्र सर्वस्याचलितं स्थितम्।
तथा कश्चिन्महात्मा कर्मज्ञानी कृतार्थ्यताम्।।

हिंदी अनुवाद:
जैसे दीपक अचल स्थान पर स्थित रहता है और उसकी ज्योति बिना विचलित होती है, वैसे ही एक महात्मा जो कर्मज्ञान से साक्षात्कार करता है, वह अपने कर्मों से पूर्ण संतुष्ट रहता है।

महत्व:
यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि आत्म-ज्ञान और कर्म से ही व्यक्ति को शांति और स्थिरता मिलती है।


4. श्लोक 15.19

संस्कृत:
य: शास्त्रविहितं कर्म सर्वं यत्प्रणिपालयेत्।
सोऽहमास्यामं सम्प्राप्ते तु पुरुषोत्तमा:।।

हिंदी अनुवाद:
जो शास्त्रों द्वारा निर्धारित कर्मों का पालन करता है, वही भगवान के परमात्मा रूप में प्रतिष्ठित होता है।

महत्व:
यह श्लोक बताता है कि शास्त्रों के अनुसार कर्म करने से व्यक्ति परमात्मा के साथ जुड़ सकता है और उच्चतम जीवन का अनुभव कर सकता है।


अध्याय 15 का आध्यात्मिक संदेश

भगवद गीता के अध्याय 15 में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म और आत्मा के संबंध को स्पष्ट रूप से बताया है। इस अध्याय से निम्नलिखित आध्यात्मिक संदेश मिलते हैं:

  1. आत्मा का शाश्वत रूप:
    आत्मा अविनाशी और शाश्वत है, यह केवल शरीर को छोड़ती है, लेकिन कभी नष्ट नहीं होती।

  2. ब्रह्म का सर्वोत्तम रूप:
    परमात्मा या ब्रह्म ही सच्चा और सर्वोत्तम है, और सभी प्राणियों का अस्तित्व उसी से है।

  3. योग और भक्ति का मार्ग:
    आत्मा और परमात्मा के साथ एकता के लिए हमें भक्ति और योग का मार्ग अपनाना चाहिए।

  4. शास्त्रों का पालन:
    भगवान के साथ जुड़ने के लिए शास्त्रों में बताए गए मार्गों का अनुसरण करना जरूरी है।


अध्याय 15 का जीवन में महत्व

  1. आध्यात्मिक उन्नति:
    भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों को आत्मसात करने से जीवन में शांति और संतोष मिलता है।

  2. सच्चे आत्म-ज्ञान की प्राप्ति:
    आत्मा और परमात्मा के संबंध को जानकर जीवन का उच्चतम उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है।

  3. भक्ति और कर्म का महत्व:
    भक्ति और कर्म के द्वारा हम परमात्मा से जुड़ सकते हैं और अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।

भगवद गीता का अध्याय 15 हमें यह सिखाता है कि सच्चे ज्ञान और भक्ति से ही हम जीवन के सर्वोत्तम उद्देश्य को प्राप्त कर सकते हैं।


निष्कर्ष

"भगवद गीता अध्याय 15" एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा, परमात्मा और ब्रह्म के रहस्यों को बताया है। यह अध्याय हमें बताता है कि आत्मा अविनाशी है और वह परमात्मा का अंश है। इसी ज्ञान से हम जीवन में संतुलन और शांति पा सकते हैं।

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