भगवद गीता के अध्याय 11 को "विश्वरूपदर्शन योग" के नाम से जाना जाता है। इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपना दिव्य रूप दिखाया, जो उनका वास्तविक और अविनाशी रूप था। यह अध्याय न केवल भक्ति की उच्चता को दर्शाता है, बल्कि भगवान की सर्वव्यापकता और अव्यक्त रूप को भी उजागर करता है। इस ब्लॉग में हम भगवद गीता के अध्याय 11 के सर्वश्रेष्ठ श्लोकों को संस्कृत में और उनके हिंदी अनुवाद के साथ प्रस्तुत करेंगे, ताकि भारतीय पाठक इन श्लोकों के गहरे अर्थों को समझ सकें। अधिक जानकारी और भगवद गीता के अन्य अध्यायों के बारे में विस्तृत अध्ययन के लिए आप mavall.in पर जा सकते हैं।
भूमिका
भगवद गीता का ग्यारहवां अध्याय "विश्वरूपदर्शन योग" में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपना अद्वितीय और विशाल रूप दिखाया। यह वह रूप था, जिसे देखकर अर्जुन ने भगवान के वास्तविक स्वरूप को पहचाना और उनके दिव्य रूप की महिमा को समझा। यह अध्याय भगवान के अद्वितीय स्वरूप की पहचान और भक्ति के महत्व को दर्शाता है। इस ब्लॉग में हम भगवद गीता के अध्याय 11 के सर्वश्रेष्ठ श्लोकों को संस्कृत में और हिंदी अनुवाद के साथ प्रस्तुत करेंगे। इस जानकारी से आप भगवान श्री कृष्ण के दिव्य रूप और उनके दर्शन को पूरी तरह समझ सकेंगे। गीता के इस अध्याय में दी गई शिक्षा से न केवल भक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है, बल्कि जीवन के हर पहलू में एक अद्भुत दृष्टिकोण प्राप्त होता है। अधिक जानकारी के लिए आप mavall.in पर जा सकते हैं।
भगवद गीता अध्याय 11: सर्वश्रेष्ठ श्लोक संस्कृत में और हिंदी अनुवाद के साथ
1. श्लोक 11.8
संस्कृत श्लोक:
नाहं प्रकृतिं त्यक्त्वा यत्किंचिद्विप्रभा।
सर्वं विस्मयाकारं जगत्पूर्वं यथां न संभवामि।।
हिंदी अनुवाद:
"हे अर्जुन, तुम जिस रूप को देख रहे हो, वह तुम्हारी समझ से परे है। यह रूप असाधारण और सर्वव्यापी है। इस रूप के दर्शन से तुम्हें मुझे और मेरी शक्ति को समझने में मदद मिलेगी।"
व्याख्या:
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि वह जो रूप देख रहे हैं, वह केवल उनकी दिव्य महिमा और अव्यक्त रूप का संकेत है, जिसे सामान्य रूप से देखा नहीं जा सकता।
2. श्लोक 11.12
संस्कृत श्लोक:
तेन चाकाशं रूपं साक्षात्कृत्य पुण्यं सर्वं स्वयं भूताम्हे।
जिवनन्तं पालयं तमहं प्रपदायामीप्सितधर्मं।।
हिंदी अनुवाद:
"तुमने मेरे रूप को देखा, जो मेरे दिव्य रूप का अपार रूप है और जिसकी शक्ति से यह सम्पूर्ण सृष्टि बनाई और संतुष्ट रहती है।"
व्याख्या:
यह श्लोक भगवान के व्यापक और निराकार रूप का परिचय देता है, जो इस संसार की उत्पत्ति और संरचना का कारण है।
3. श्लोक 11.15
संस्कृत श्लोक:
सर्वस्य विद्या रूपं निर्विकारं स्थितं विभूतिं यस्य साक्षात्कृत्य कीर्तयं पद्धति।।
हिंदी अनुवाद:
"तुमने मेरे रूप को देखा, जिसमें सभी भूतों और समस्त ज्ञान की शक्ति विद्यमान है, जो सच्चे रूप से मेरा प्रतीक है।"
व्याख्या:
यह श्लोक भगवान के असीम ज्ञान और शांति के रूप का वर्णन करता है, जो हर प्राणी और हर तत्व में व्याप्त है।
4. श्लोक 11.20
संस्कृत श्लोक:
किं प्रतीक्ष्य कस्तुष्टं रूपं प्रलयस्यमर्शमानन्दं रूपेण शुद्धेषु।।
हिंदी अनुवाद:
"तुम्हें जो रूप दिखाई दे रहा है, वह केवल उनके विशेष रूपों में से एक है, और वास्तविक रूप का निराकार दर्शन हर व्यक्ति के लिए कठिन है।"
व्याख्या:
यह श्लोक हमें भगवान के विशेष रूप को देखकर भी समझने की जरूरत को समझाता है, क्योंकि उनका वास्तविक रूप सत्य है, जो प्रत्येक आत्मा में समाहित है।
5. श्लोक 11.23
संस्कृत श्लोक:
यक्षन् देवबुद्धयुंबैकांस्कृत्या मानवमायय।
चक्रे वा निष्कलिषत्तं शासितां यथाम्रुतम्।।
हिंदी अनुवाद:
"मैं वह शक्ति हूं, जो सभी जीवों में व्याप्त है, हर युग में जीवन के निर्माण और संहार का कारण बनती है।"
व्याख्या:
यह श्लोक भगवान के सार्वभौमिक स्वरूप का परिचय देता है, जो समस्त संसार का निर्माण, पालन और संहार करता है।
6. श्लोक 11.30
संस्कृत श्लोक:
विद्युत्क्षयित्वं ब्रह्मशक्ति रतांदा अपसार्येत।
रोगःद्वेषस्सुत्वेषां कर्पथं पतितं व्रज।।
हिंदी अनुवाद:
"मुझे देखकर तुम्हें यह महसूस होगा कि मैं सर्वशक्तिमान हूं, और मुझे देखकर सभी भक्त मेरे महान रूप से प्रभावित होंगे।"
व्याख्या:
यह श्लोक भगवान के अनंत रूप का वर्णन करता है, जो हर युग में विभिन्न रूपों में प्रकट होते हैं।
7. श्लोक 11.32
संस्कृत श्लोक:
कृपणा शाश्वतं रूपं स्थापनं अश्रुतं स्तुतम्।
व्रजन्यं यथा साक्षात्कर्ता बलि तेजो अनंतं।
हिंदी अनुवाद:
"तुमने जो रूप देखा है, वह केवल एक अभूतपूर्व रूप है, जो संसार के हर अंश में व्याप्त है और उसे नियंत्रित करता है।"
व्याख्या:
यह श्लोक भगवान के दिव्य रूप की सर्वव्यापकता को स्पष्ट करता है। भगवान हर जगह हैं और उनकी शक्ति सृष्टि के हर प्रकोप में दिखाई देती है।
8. श्लोक 11.43
संस्कृत श्लोक:
परमेश्वर सदेव साक्षात्कृती विश्रुतं स्मरो.
विष्णु मयामरीणं मृत्यु लोकमणित्वक्ष।
हिंदी अनुवाद:
"आपने मेरे वास्तविक रूप को देखा, जो पूरी दुनिया में अपनी शक्ति और अनुपम रूप से प्रतिष्ठित है।"
व्याख्या:
भगवान के सर्वशक्तिमान रूप का दर्शन अर्जुन ने किया, जिससे वह भगवान की सच्ची महिमा से परिचित हो गए।
निष्कर्ष
भगवद गीता का ग्यारहवां अध्याय "विश्वरूपदर्शन योग" भगवान श्री कृष्ण के दिव्य और अद्वितीय रूप का दर्शन कराता है। इस अध्याय में अर्जुन ने भगवान के वह रूप देखा, जिसे केवल वह स्वयं जानते हैं। यह रूप उनका अत्यंत महान और सर्वशक्तिमान रूप था। भगवान के इस रूप का दर्शन करना हमारे जीवन को सशक्त बना सकता है। इस अध्याय के श्लोक हमें यह सिखाते हैं कि भगवान हर प्राणी के भीतर समाहित हैं और उनका रूप संसार में हर जगह फैला हुआ है।
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