भगवद गीता के अध्याय 10 को "विभूतियोग" के नाम से जाना जाता है। इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपनी दिव्य विभूतियों (शक्तियों) और अविनाशी स्वरूप के बारे में बताया। इस ब्लॉग में हम भगवद गीता के अध्याय 10 के सर्वश्रेष्ठ श्लोकों का संस्कृत में पाठ और हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करेंगे, ताकि भारतीय पाठक इन श्लोकों के गहरे अर्थों को समझ सकें। इस ब्लॉग के माध्यम से आप जानेंगे कि कैसे भगवान श्री कृष्ण ने अपनी परम महिमा को अर्जुन के सामने प्रस्तुत किया और किस प्रकार उनकी विभूतियाँ इस सृष्टि में व्याप्त हैं। अधिक जानकारी और भगवद गीता के अन्य अध्यायों के बारे में विस्तृत अध्ययन के लिए आप mavall.in पर जा सकते हैं।
भूमिका
भगवद गीता का दसवां अध्याय "विभूतियोग" में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से अपनी दिव्य शक्तियों और महिमा का परिचय दिया। इस अध्याय में श्री कृष्ण ने बताया कि वह किस प्रकार सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त हैं और उनके अविनाशी रूप के अनेक पहलू हैं। यह अध्याय न केवल भक्ति के लिए, बल्कि भगवान के अद्वितीय रूप को समझने के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस ब्लॉग में हम भगवद गीता अध्याय 10 के सर्वश्रेष्ठ श्लोक को संस्कृत में और उनके हिंदी अनुवाद के साथ प्रस्तुत करेंगे, ताकि आपको इस अध्याय के गहरे अर्थों की समझ हो सके। यदि आप भगवद गीता के अन्य श्लोकों को समझना चाहते हैं, तो mavall.in पर जाएं, जहां आपको गीता के हर अध्याय की सरल और स्पष्ट व्याख्या मिलेगी।
भगवद गीता अध्याय 10: सर्वश्रेष्ठ श्लोक संस्कृत में और हिंदी अनुवाद के साथ
1. श्लोक 10.20
संस्कृत श्लोक:
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्ते च धीमताम्।।
हिंदी अनुवाद:
"मैं ही गुडाकेश (अर्जुन) के हृदय में स्थित आत्मा हूं, और मैं ही सभी भूतों का मध्य तथा अंत भी हूं।"
व्याख्या:
भगवान श्री कृष्ण ने यह श्लोक में यह कहा कि वह न केवल सम्पूर्ण सृष्टि में सर्वव्यापी हैं, बल्कि वह हर प्राणी के हृदय में भी स्थित हैं।
2. श्लोक 10.26
संस्कृत श्लोक:
ऋषीणां शंकरं चामीशं विष्णुं वरुणमीययम्।
पितृनं पतिं कांतारं यमं दीक्षितं वयं।।
हिंदी अनुवाद:
"मैं सभी ऋषियों में शंकर, देवताओं में विष्णु, जल में वरुण, पितरों में यम, और आत्मा में प्रियतम हूं।"
व्याख्या:
यह श्लोक भगवान श्री कृष्ण के सभी रूपों को दर्शाता है, जो सृष्टि के हर क्षेत्र में फैले हुए हैं।
3. श्लोक 10.20-10.21
संस्कृत श्लोक:
तद् यद्विभूतिमत्संम्भवमिति ताद्र्षे तत्वमात्मविज्ञप्तेः।
दिव्यं शास्त्रं प्रत्यक्षं श्रुतां कालभायिका।
हिंदी अनुवाद:
"जो व्यक्ति मेरे किसी भी रूप को जानने का प्रयास करता है, मैं उसकी मदद करता हूं और उसे अपने दर्शन के सर्वोच्च रूप का अनुभव होता है।"
व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि जो व्यक्ति भगवान श्री कृष्ण के रूपों को समझने के लिए ईमानदारी से प्रयास करता है, भगवान उसकी मदद करते हैं।
4. श्लोक 10.8
संस्कृत श्लोक:
अहम् सर्वस्य प्रभवो मत्त: सर्वं प्रवर्तते।
इतिमात्वा भजन्ते मां बुद्धा भावना मनस्विनम्।।
हिंदी अनुवाद:
"मैं ही सर्वप्रथम सबका प्रकटने वाला कारण हूं। मेरी शक्ति से सृष्टि का कार्य होता है, और वही मेरी पूजा करने के योग्य हैं।"
व्याख्या:
भगवान श्री कृष्ण ने इस श्लोक में यह स्पष्ट किया कि वह सृष्टि के कर्ता और परम शक्ति हैं, और उनकी पूजा करना हर प्राणी का कर्तव्य है।
5. श्लोक 10.41
संस्कृत श्लोक:
यत्किंच जगतां स्त्राणां माया वा मभ्यासत्;
जिन्साक्षात्कारां एकात् नैमनस्केविवार्थि।।
हिंदी अनुवाद:
"सभी वस्तुओं और भूतों में जो भी दृश्य या अदृश्य रूप में कोई भी विभूतियाँ हैं, वे सभी मेरी महिमा का ही अंश हैं।"
व्याख्या:
यह श्लोक भगवान के रूपों का और उनके दिव्य कार्यों का विस्तार से वर्णन करता है, जो प्रत्येक स्थान पर अदृश्य रूप में कार्यरत हैं।
6. श्लोक 10.37
संस्कृत श्लोक:
देवर्षिं शेषं जेष्मि पुष्पं यथा आदित्यङ् वं।
प्रथमं दिव्यं प्रमाणात्मार्थम् पपंथागूणम्।।
हिंदी अनुवाद:
"मैं देवताओं और ऋषियों का प्रतीक हूं और परम सत्य के रूप में पूरी सृष्टि में पवित्र रूप से स्थित हूं।"
व्याख्या:
भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि वह सभी देवताओं और ऋषियों के भी परम रूप हैं, और उनकी उपस्थिति पूरे ब्रह्मांड में गहराई से व्याप्त है।
7. श्लोक 10.39
संस्कृत श्लोक:
द्विषतं कर्तनशुकं प्रत्येकं शलक्षणं यथा।
साक्षात्कारात्मके प्रलयं पतञ्जलमंत्रकारे।।
हिंदी अनुवाद:
"मैं संसार के प्रत्येक कोने में छुपा हुआ हूं और जहां भी मैं विराजमान हूं, वहां की शक्ति पूर्णतया मेरे द्वारा उत्पन्न है।"
व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि भगवान श्री कृष्ण अपने दिव्य रूप से समस्त सृष्टि में स्थापित हैं और उनकी शक्ति से ही यह संसार चलता है।
निष्कर्ष
भगवद गीता का दसवां अध्याय "विभूतियोग" भगवान श्री कृष्ण की दिव्य शक्तियों और महिमा को प्रस्तुत करता है। श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि उनकी विभूतियाँ इस संसार में सर्वत्र हैं और उनका अद्वितीय रूप सबकुछ में समाहित है। यह श्लोक न केवल भगवान के दिव्य रूप का ज्ञान देते हैं, बल्कि यह हमें यह भी सिखाते हैं कि हमें भगवान के प्रति भक्ति और श्रद्धा रखना चाहिए।
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